प्रतियोगी जीवन का साथी: सामाजिक अनुसन्धान का विषय-क्षेत्र

सामाजिक अनुसन्धान का विषय-क्षेत्र

सामाजिक अनुसन्धान का विषय-क्षेत्र

 




सामाजिक अनुसन्धान के विषय-क्षेत्र का निर्धारण करना एक कठिन कार्य है। यदि हम सामाजिक अनुसन्धान के विभिन्न प्रकारों को सामने रखें तो स्पष्टत: यह कहा जा सकता है कि इसकी विषय - वस्तु एवं विषय-क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। सामाजिक वास्तविकता को जानने के लिए किए जाने वाले मौलिक या विशुद्ध अनुसन्धान, सामाजिक व्याधिकी से सम्बन्धित विभिन्न अनुसन्धान तथा सुधार हेतु किए जाने वाले क्रिया अनुसन्धान इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। वास्तव में, सामाजिक अनुसन्धान की विषय - वस्तु एवं विषय-क्षेत्र इतना अधिक विस्तृत है कि किसी भी समान्य सामाजिक घटना, विशिष्ट सामाजिक घटना तथा अमूर्त घटनाओं का अध्ययन इनमें सम्मिलित किया जा सकता है। 




कुछ विद्वान् तो सामाजिक व्यवहार के किसी भी पहलू के अध्ययन को सामाजिक अनुसन्धान के अन्तर्गत रखने के पक्ष में हैं तथा इस नाते अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, सामाजिक इतिहास, सामाजिक मानवशास्त्र, अपराधशास्त्र तथा समाज कार्य में किए जाने वाले अनुसन्धानों को भी हम सामाजिक अनुसन्धान के अन्तर्गत ही रख सकते हैं। इसके विषय-क्षेत्र की विस्तृतता का अनुमान इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि आज संचार एवं पत्रकारिता इत्यादि में भी सामाजिक अनुसन्धान का अत्यधिक प्रयोग किया जाने लगा है। भौगोलिक क्षेत्र की दृष्टि से भी आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुसन्धान किए जाने लगे हैं। इसके विपरित, कुछ विद्वान् सामाजिक अनुसन्धान को समाजशास्त्र की विषय - वस्तु तक ही सीमित रखना चाहते हैं जो कि न तो आज ज्यादा उचित लगता है और न ही अधिक तर्कसंगत।




सामाजिक अनुसन्धान के विषय-क्षेत्र से सम्बन्धित एक अन्य तथ्य यह है कि अधिकांशतया इसकी प्रकृति गुणात्मक होती है। इसीलिए इसमें प्रायोगिक पद्धति द्वारा अध्ययन करने में विशेष कठिनाई रहती है। इसिलिए सामाजिक अनुसन्धान में कार्योत्रर अथवा कार्यान्तर तथ्य अनुसन्धान, घटना - स्थल पर किए जाने वाले क्षेत्रीय अनुसन्धान एवं सर्वेक्षण अनुसन्धान की ही प्रधानता पाई जाती है।




सामाजिक अनुसन्धान के विषय-क्षेत्र में उन अध्ययनों को भी सम्मिलित किया जाता है जिनका उद्देश्य पुराने तथ्यों की पुनर्परीक्षा करना है। प्रकार्यात्मक सम्बन्धों को ज्ञात करने हेतु किए जाने वाला अनुसन्धान भी सामाजिक अनुसन्धान ही कहलाता है।




 सामाजिक अनुसन्धान के विषय-क्षेत्र में सामान्यतया निम्नलिखित अध्ययनों को सम्मिलित किया जाता है-





1. मानव स्वभाव एवं व्यक्तित्व का अध्ययन।


2. जनसमूहों एवं सांस्कृतिक समूहों का अध्ययन।


3. परिवार के स्वरूप, अंतर्निहित नियमों, संगठन एवं विघटन का अध्ययन।


4. सामाजिक संगठनों एवं संस्थाओं का अध्ययन।


5. जनसंख्या तथा प्रादेशिक समूहों की सामुदायिक परिस्थितियों का अध्ययन।


6. सामूहिक व्यवहार का अध्ययन।


7. समूहों में पाए जाने वाले संघर्ष एवं व्यवस्थापन का अध्ययन।


8. सामाजिक समस्याओं, सामाजिक व्याधिकी एवं सामाजिक अनुकूलन का अध्ययन।


9. नवीन सिद्धांतो एवं पद्धतियों से सम्बंधित नियमों की खोज, पुराने सिद्धांतो एवं पद्धतियों की पुनर्परीक्षा तथा नवीन सिद्धांतो एवं पद्धतियों की खोज।





उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक अनुसन्धान का विषय-क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। मानव समाज एवं सामाजिक जीवन का शायद ही कोई ऐसा पक्ष हो जो कि इसके विषय-क्षेत्र के अन्तर्गत न आता हो। इसीलिए यह कहा जाता है कि सामाजिक अनुसन्धान के विषय-क्षेत्र की कोई सीमा रेखा सुनिश्चित नहीं की जा सकती।





इन्हें भी देखें-



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